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सोमवार, 19 सितंबर 2011
...सांप चल बसा, नेता हंसता रहा
-सांसद अर्जुन ने चलाए 'तीर'
साभार- सांध्य बॉर्डर टाइम्स
प्रकाशन तिथि- 19 September 2011
पीलीबंगा।
'एक बार एक सांप ने एक नेता को डसा, सांप चल बसा, नेता हंसता रहा' सांसद एवं अणुव्रत संसदीय मंच के राष्ट्रीय संयोजक अर्जुन मेघवाल ने कुछ ऐसी पंक्तियों के साथ राजनीति में घटती नैतिकता पर 'तीर' चलाए।
साध्वीश्री सोमलता के सान्निध्य में रविवार को हुए जैन श्वेताम्बर तेरापंथी आंचलिक श्रावक सम्मेलन में मुख्य अतिथि के रूप में उन्होंने कहा कि जन प्रतिनिधियों में नैतिकता बहुत जरूरी है। लोकपाल कमेटी के सदस्य मेघवाल ने सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे का कई बार जिक्र किया।
चाणक्य एवं तेरापंथ धर्म संघ को शिखर पर ले जाने वाले आचार्यश्री तुलसी का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि देश की गौरवशाली परम्परा रही है लेकिन भ्रष्टाचार एवं अनैतिकता के कारण शर्म भी आती है।
नहीं चलाएं खोटी चवन्नी
खोटी बात में प्रतिस्पर्धा को चिंताजनक बतातेे हुए उन्होंने रेलगाड़ी में एक नेता और एक अधिकारी के साथ सफर का किस्सा भी सुनाया। उन्होंने ठहाकों के बीच कहा कि सारे नेता एक जैसे नहीं होते। मेघवाल ने जोर देकर कहा कि वे टेलीफोन ऑपरेटर से कलक्टर और अब देश की सबसे बड़ी पंचायत में प्रतिनिधित्व करने वाले सांसद बन गए हैं परंतु उनका शुद्ध-सात्विक आचरण से काम करने का प्रण है।
शक्ति का संतुलन जरूरी
शक्ति के संतुलन को जरूरी बताते हुए मेघवाल ने कहा कि इसके बिना परिणाम अपेक्षित नहीं मिलते। वे लोकपाल बिल संबंधी कमेटी में अणुव्रत की चर्चा अवश्य करेगे। अणुव्रत के माध्यम से समाज को सही दिशा मिल सकती है। उन्होंने कहा कि नेताओं को राजधानी पसंद है। गुरु के प्रति समर्पण को आवश्यक बताते हुए मेघवाल ने 'अब सौंप दिया इस जीवन का सब भार तुम्हारे हाथों में...' गीत भी सुनाया।
यह है अनूठी स्कीम
सांसद ने अपनी अनूठी स्कीम का जिक्र करते हुए कहा कि लोकसभा की कार्रवाई देखने के इच्छुक उनके मोबाइल नम्बर पर सम्पर्क कर दिल्ली आ सकते हैं। वे उन्हें ठहराएंगे, खाना खिलाएंगे, दिल्ली दर्शन करवाएंगे लेकिन भाड़ा उनको खुद भुगतना होगा। संसद में 12 रुपए की खाने की थाली के बारे में उन्होंने कहा कि एक सज्जन आए और बोले कि यह वही थाली है क्या, जिसे खाकर नेता मोटे हो रहे हैं।
link- http://www.sandhyabordertimes.com/index.php?option=com_content&view=article&id=7423:2011-09-19-09-32-08&catid=54:sriganganagar&Itemid=89
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